चिंतन के धरातल ने भगतसिंह को युगपुरुष होने का प्रमाण दिया - दशोत्तर*

चिंतन के धरातल ने भगतसिंह को युगपुरुष होने का प्रमाण दिया - दशोत्तर*
*जनवादी लेखक संघ ने शहीदों को याद किया*
*रतलाम।* छोटी सी उम्र में भगत सिंह ने चिंतन का जो धरातल हासिल कर लिया था वह उनके युगपुरुष होने का प्रमाण था । ऐसे चिंतक ही इतिहास की दिशा बदलने और उसकी गति को तेज़ करने का माद्दा रखते हैं। भगत सिंह की शहादत भारतवासियों को आज भी जलती मशाल की तरह प्रेरणा देती है, मगर विडंबना यह भी है कि आज भी इस देश के शिक्षित लोगों का एक बड़ा हिस्सा भगत सिंह को सिर्फ़ एक वीर क्रांतिकारी ही मानता है।वह यह नहीं जानता कि यह युवा एक महान चिंतक भी था। यदि भगत सिंह को 23 वर्ष की अल्पायु में फांसी नहीं हुई होती तो राष्ट्रीय मुक्ति संघर्ष और भारतीय सर्वहारा क्रांति का इतिहास कुछ और ही ढंग से लिखा जाता ।
उक्त विचार जनवादी लेखक संघ द्वारा आयोजित विचार गोष्ठी में भगत सिंह, सुखदेव एवं राजगुरु की शहादत को सलाम करते हुए युवा साहित्यकार एवं भगत सिंह की पत्रकारिता पर पुस्तक 'समर में शब्द' के लेखक आशीष दशोत्तर ने व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि भगत सिंह ने अपने जेल के दो वर्षों के दौरान चिंतन के धरातल को बहुत पुख़्ता कर लिया था । उन्होंने इस दौरान चार पुस्तकें लिखी। ये पुस्तकें आत्मकथा, समाजवाद का आदर्श , भारत में क्रांतिकारी आंदोलन तथा मृत्यु के द्वार पर शीर्षक से थीं। दुर्भाग्यवश इनकी पांडुलिपियां रहस्यमय ढंग से गायब की गई । यदि ये पुस्तके हमारे सामने आती तो भगत सिंह ने अपने मृत्यु से पूर्व जिस वैचारिक स्थिति को प्राप्त किया था वह हमारे सामने आ सकते थे। उन्होंने जेल के दौरान भगत सिंह द्वारा पढ़ी गई पुस्तकों और उनमें से उद्धृत पंक्तियों का उल्लेख करते हुए कहा कि भगत सिंह ने धर्म, जाति की संकुचित विचारधारा को कभी नहीं स्वीकारा ,बल्कि वे एक ऐसे भारत की कल्पना कर रहे थे जो वैज्ञानिक समाजवाद की ओर अग्रसर था। उन्होंने भगतसिंह द्वारा जेल में लिखी गई टिप्पणियों का उल्लेख करते हुए उन रचनाओं को भी पढ़ा जो भगतसिंह को प्रिय थी।
विशेष अतिथि प्रो रतन चौहान ने कहा कि भगत सिंह ने अपने जीवन में उन ऊंचाइयों को छू लिया था,जो अकल्पनीय लगती है। स्वतंत्रता संग्राम में क्रांतिकारियों के अवदान को भुलाया नहीं जा सकता है। भगतसिंह ने अपनी वैचारिक स्थिति को पुख्ता कर लिया था। अध्यक्षता करते हुए मांगीलाल नगावत ने कहा कि भगतसिंह ने पंजाब की भाषा और लिपि पर महत्वपूर्ण लेख लिखकर अपनी लेखनी का परिचय दे दिया था। वे विलक्षण थे।
इस अवसर पर प्रणयेश जैन ने भगतसिंह पर कविता का पाठ किया। कीर्ति शर्मा ने पंजाब के कवियों की रचनाओं का पाठ कर स्वतंत्रता आन्दोलन में सृजन की भूमिका रेखांकित की। संचालन सचिव सिद्धीक़ रतलामी ने किया तथा आभार अध्यक्ष रणजीत सिंह राठौर ने माना। गोष्ठी में लक्ष्मण पाठक,सुभाष यादव, सत्यनारायण सोढ़ा, डीएम बौरासी ने भी विचार व्यक्त किए।